तू शहर नहीं, एहसास है!

हमें हो जाता है इंसानों से प्यार और लगाव,
लेकिन क्या किसी जगह से हो जाता है प्यार?
शायद मुझे हुआ है एक शहर से प्यार,
मुझे लगता नहीं वो शहर है, वो है एक एहसास!

जन्म-भूमि तो नहीं वो मेरी,
कर्म-भूमि है ज़रूर,
रिश्ता खून का तो नहीं है लेकिन,
दिल का नाता है मज़बूत!

छोटा सा यह शहर है मेरा,
नहीं है इसमें बड़ी नगरी का जादू
फिर भी कुछ तो बात है की
यहाँ रहकर नहीं है दिल पे काबू.

इसकी गलियों को, सड़कों को सिर्फ देखा नहीं,
महसूस किया है मैंने,
कोई कैसे कहेगा यह मेरा नहीं!
इस तरह जिया है इसे मैंने!

अपना जीवन यहाँ बिताया है मैंने,
अपना बचपन यहाँ मनाया है मैंने,
ज्ञान सारा यहीं से पाया
दोस्त सभी यहीं बनाये मैंने.

लिया है इसने अपनी बाँहों में मुझे
स्वीकारा  है इसने पूरी शिद्दत से मुझे,
है जो मेरे पास, सभी इसका दिया हुआ
कभी न छोड़ना चाहू, ऐसे यादें दी है इसने!

क्या नाम है इस शहर का?
क्या नाम इसका मेरा घर है?
घर तो है ही सही
मैं कहूँगी ये स्वर्ग से भी बढ़कर है.

बोली यहाँ की है अनोखी,
प्रेम-वाणी सी मिठास है
मुझे नहीं लगता ये सिर्फ शहर है,
मेरे लिए ये एक एहसास है!

मेरी कर्म-भूमि 'वड़ोदरा'/ 'बरोड़ा' को समर्पित ये कविता

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